साम्राज्यवाद से क्या अभिप्राय है ? प्राचीन व नवीन साम्राज्यवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background) – विश्व में औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् कच्चा माल प्राप्त करने और तैयार माल को खपाने के लिए बाजारों की खोज का अभियान आरम्भ हुआ। इसी अभियान में अनेक बड़े बाजारों वाले प्रदेशों पर अधिकार कर लिया गया और इस प्रकार साम्राज्यवाद का जन्म हुआ। सत्रहवीं सदी के पूर्व से ही साम्राज्यवाद विभिन्न रूपों में विद्यमान रहा है। सातवीं शताब्दी में अरबों ने, इसके पश्चात् मंगोलों तथा तुर्कों ने तथा सोलहवीं शताब्दी में ब्रिटेन, फ्राँस, पुर्तगाल, स्पेन तथा हालैंड आदि देशों में नये प्रदेशों की खोज की तथा वहाँ पर अपने उपनिवेशों की स्थापना की। इन देशों से उन्हें अपने उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति तथा पक्के माल की बिक्री के लिए बाजार प्राप्त हुए।

प्राचीन तथा नवीन साम्राज्यवाद में अन्तर
(Difference between old and new Imperialism)

प्राचीन तथा नवीन साम्राज्यवाद में अन्तर निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) उद्देश्यों में अन्तर (Difference Regarding Objectives) प्राचीन काल में साम्राज्यों की स्थापना का उद्देश्य नवीन प्रदेशों को जीतकर अपने अधीन लाना तथा
राजाओं व सेनापतियों की महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण करना था। नवीन प्रदेशों के निर्माण का मुख्य उद्देश्य साम्राज्यवादी राज्य के आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति करना है। अर्थात् कच्चे माल की पूर्ति करना है। अर्थात् कच्चे माल की प्राप्ति तथा तैयार माल के लिए बाजार।

(2) साम्राज्य का निर्माण (Foundation of the Empire) – प्राचीनकाल में प्रबल तथा शक्तिशाली सम्राट अपने प्रतिद्वन्द्वियों को समाप्त करके विशालकाय
भू-खण्डों पर, जो प्रायः उनसे सम्बद्ध होते थे, सामाज्य निर्माण करते थे। नवीन साम्राज्य अनेक भू-खण्डों में विभक्त रहता है तथा उसके अनेक प्रतिद्वन्द्वी होते हैं।


(3) अधीनस्थ देश का शोषण (Exploitation of the SubordinateCountries) – प्राचीन काल में सम्राट प्रायः अधीन देशों से कर (टैक्स) वसूल करते थे तथा अधीन देशों के नागरिकों को अपनी सेना में सैनिक के रूप में भर्ती करते थे। प्रदेशों की आन्तरिक व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं होता था। वर्तमान साम्राज्यवादी देश अपने अधीनस्थ राज्यों और प्रदेशों पर राजनीतिक तथा आर्थिक प्रतिबन्ध लगाते हैं, अधीनस्थ प्रदेशों की शासन प्रणाली, न्याय व्यवस्था, व्यापार वाणिज्य आदि पर पूर्ण नियन्त्रण लगाते हैं। इस प्रकार प्राचीनकाल की अपेक्षा नवीनकाल में साम्राज्यवाद का लक्ष्य अधीनस्थ प्रदेशों का अधिक शोषण करना है।


(4) दास प्रथा (Slarery) – प्राचीनकाल के साम्राज्यों में दास प्रथा का प्रचलन था। वर्तमान साम्राज्यों में दास प्रथा का अन्त हो चुका था।

(5) उत्तरदायित्व (Responsibility) – साम्राज्यवादी देश अपने कार्यों के लिए अपने देश की जनता तथा उसकी निर्वाचित संसद के प्रति उत्तरदायी होते थे। यह जनता अपनी सरकारों पर पराधीन देशों के लोगों के साथ अमानवीय तथा स्वेच्छाचारी व्यवहार करने पर प्रतिबन्ध लगाती थी। नवीन साम्राज्यवाद में साम्राज्यवादी देशों का अप्रत्यक्ष नियन्त्रण होने के कारण अल्पविकसित देशों को विकसित देशों द्वारा किए जाने वाले अत्याचार तथा अन्यायों से परित्राण पाने के बहुत कम अवसर प्राप्त होते हैं।

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