प्लेटो के न्याय सिद्धान्त की आलोचनाएँ

प्लेटो के न्याय सिद्धान्त की प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) दा्शनिक वर्ग को समस्त शक्तियाँ देना अनुचित- प्लेटो ने शासन सम्बन्धी सभीशक्तियौँ केवल दार्शनिक वर्ग को ही सौंपी हैं । इस तरह एक ही वर्ग को सम्पूर्ण राजनीतिक सत्ता प्रदान करना, सत्ता के एकाधिकारवाद को प्रोत्साहन देना है। अधिक शक्तियाँ पाकर दार्शनिक शासक वर्ग भी भ्रष्ट हो जायेगा।

(2) अव्यावहारिक सिद्ध्वान्त-प्लेटो ने अपने न्याय सिद्धान्त में नैतिकता और वैधानिकता के बीच कोई अन्तर नहीं किया है । इसलिए प्रथम तो प्लेटो के न्याय की कोई संगति ही आज के न्याय के अर्थ के साथ नहीं बैठती है । दूसरे, यदि सभी कोई दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप करें तथा इस कारण परस्पर संघर्ष हो जाये, तो इस संघर्ष को कैसे हल किया जाए ? इसकी कोई व्यवस्था प्लेटो ने अपने न्याय सिद्धान्त में नहीं की है। इसीलिए प्रो. बर्कर ने इस सम्बन्ध में लिखा है किटो काो न्याय वस्तुत: न्याय नहीं है, वह केवल मनुष्यों को अपने कर्त्व्यों तक सीमित करने वाली भावना मात्र है, कोई ठोस कानून नहीं है।

(3) सामान्य जनता पर अविश्वास – प्लेटो ने अपने न्याय सिद्धान्त में वर्गीय विशेषाधिकारें को न्यायोचित ठहराया है । प्लेटो ने सामान्य जनता को बौद्धिक व्यक्तियों के उसी प्रकार अधीनर दिया जिस प्रकार एक रोगी डॉक्टर के अधीन हो जाता है । प्रो. सेबाडन के शब्दों में, “यह बात समय के प्रतिकूल थी तथा प्रजातंत्र के मूल सिद्धान्त के विपरीत ।

(4) गुणों के निर्धारण का कोई सही आधार नहीं -किसी मनुष्य में तीनों गुणों मे से किस गुण की प्रधानता है, इसका निर्धारण किस आधार पर होगा, प्लेटो ने इसका कोई आथार प्रस्तुत नहीं किया है । ऐसे किसी आधार के अभाव में व्यक्ति के गण-निर्धारण का आधार ज बन सकता है । ऐसी स्थिति में फिर यह क्या गारण्टी है कि दार्शनिक शासक का बेटा भी उतना ह विवेकशील हो। अत: प्रकृतिस्थ गुणों के मापने का कोई सही मानक न होने के कार

(5) व्यक्ति्व के पूर्ण विकास के लिए अवसर का अभाव-प्लेटो की न्याय अन्दर की अव्यवहारिक हो जाता है। में तो एक वर्ग केवल एक ही गुण के विकास के लिए बाध्य है और उसके अन्दर ाय व्यवस्था सम्भावनाएँ विकास का अवसर ही नहीं पातीं। समाज का एक बहुत बड़ा भाग उत्यादश वर्ग उन शिक्षा से वंचित रहेगा। इस तरह इस वर्ग के अन्त्गत संरक्ण के गाणों घा विकास व नहीं।सकेगा । इस प्रक इस सिद्धान्त में सर्वागीण विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त नहीं होते हैं। करते हुए यह कहा है कि प्लेटो ने अपने ग्रन्थ ‘रिपब्लिक ‘ में अनुभव को कोई महत्त्व नहीं दिया। महत्त्व नहीं-अरस्तू ने प्लेटो के न्याय सिद्धान्त की आलोचना

(6) अनभव का को मतीजा यह हुआ कि प्लेटो नागरिक जीवन के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष को समझने में असफल इसका नतीजा रहे।

7) राज्य साध्य और व्यक्ति साधन- पलेटो के न्याय सिद्धान्त की आलोचना इसलिए क्ी गाई है कि इसमें राज्य को साध्य व व्यक्ति को साधन समझा गया है । प्लेटो कें अनसार यकति राज्य के लिए है, न कि राज्य व्यक्ति के लिए।’प्लेटो की इस बात को आज स्वीकार नहीं किया जा सकता है। प्लेटो का न्याय सिद्धान्त न्याय के आधूनिक विचार से भिन्न प्लेटो के न्याय सिद्धान्त तथा आधुनिक न्याय सिद्धान्त की भिन्नता को निम्न प्रकार विवेचित किया गया है-

(1) क्षेत्र की दृष्टि से अन्तर-प्लेटो के न्याय का अर्थ व्यापक है जबकि आधुनिक का अर्थ सीमित है । आधुनिक न्याय कानून की सीमाओं से बँधा हआ है, व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास से उसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, जबकि प्लेटो के न्याय का सिद्धान्त व्यक्ति और समाज के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास से सम्बन्धित है ।

(2) वैधानिकता और नैतिकता सम्बन्धी अन्तर-प्लेटो के न्याय का अर्थ वह नहीं है जो सामान्य व्यक्ति अपनी बोलचाल की भाषा में समझता है तथा न्याय का अर्थ वैधानिकता या न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय भी नहीं है । आधुनिक न्याय का विचार वैंधानिकता या कानून से जुड़ा हुआ है, जिसकी व्याख्या का दायित्व न्यायपालिका को सौंपा हुआ, प्लेटो के न्याय का सम्बस्थ वैधानिकृता से अधिक सदाचार और कर्त्तव्यपालन से है।

(3) आधार सम्बन्धी अन्तर-प्लेटो के न्याय का आधार व्यक्त तथा समाज की नैतिकता तथा दायित्व का पालन है जबकि आधुनिक न्याय का आधार व्यक्ति व समाज की स्वतंत्रता तथा अधिकार है।

(4) प्लेटो का न्याय, न्याय की आधुनिक अवधारणा से भिन है-आधुनिक न्यायशास्त्र के अनुसार ‘न्याय’ व्यक्ति के किसी कानून भंग करने अथवा व्यक्तिगत एवं सामाजिक अधिकारों के प्रति अपराध करने की अवस्था में राज्य द्वारा प्रयुक्त प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शांति और ्यवस्था बनाये रखने के लिए राज्य प्रयत्लशील रहता है। परन्तु प्लेटो के न्याय सिद्धान्त की वैधानिक व्याख्या स्पष्ट नहीं है। उसकी न्याय की व्याख्या भारतीय दर्शन में प्रयुक्त ‘स्वधर्म’ के अधिक समीप दिखाई देती है। प्लेटो ने अपने सिद्धान्त में नैतिकता और कैधानिकता के बीच कोई अन्तर नहीं किया है । इसलिए प्लेटो के को कोई संगति आज के न्याय के अर्थ के साथ नहीं बैठती है।

अतः स्पष्ट है कि प्लेटो का न्याथ सिद्धान्त आधुनिक न्याय के विचार से अधिक व्यापक है ।

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