पूँजीवाद से क्या आशय है ? पूँजीवाद के मुख्य लक्षणों एवं यूरोप में पूँजीवाद के उदय के कारणों पर प्रकाश डालिये।

पूँजीवाद पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त में यूरोप में जो नयी अर्थव्यवस्था उभर रही थी उसे पूँजीवाद कहा जाता है। पूँजीवाद एक संस्था से अधिक एक लोकाचार है। पूँजीवाद के लोकाचार का मूल मंत्र है, अधिक से अधिक धन की अदम्य भूख । एक पूँजीवादी धन अर्जित करने को ही जीवन का साध्य मानता है, वह साधन की चिंता नहीं करता, बल्कि वह तो धन को अर्जित करने को ही नैतिक एवं शुद्ध इच्छा मानता है।

पूँजीवाद का आधार है, अधिकाधिक लाभ कमाने के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन और उत्पादन के साधनों यथा पूँजी एवं उपकरण पर व्यक्तिगत स्वामित्व । पूँजी पर आधारित अर्थव्यवस्था में उत्पादन पर उत्पादक का स्वामित्व नहीं होता है, बल्कि उत्पादक यानी श्रमिक से नकद मूल्य के बदले उसका श्रम पूँजीपति द्वारा खरीद लिया जाता है जबकि अब एक प्रचलित व्यवस्था के अन्तर्गत कारीगर स्वयं अपने साधनों से उत्पादन करता था और सीधे ही या श्रेणियों के द्वारा उपभोक्ता को बेचता था।

पूंजीवाद में यह कारीगर अब श्रमिक बन जाता है, जिसके पास अपने कोई साधन नहीं होते, सिर्फ श्रम ही उसकी आजीविका का साधन होता है।
पूँजीवादी को कई विद्वानों ने अपने अपने शब्दों में परिभाषित किया है।

लॉक्स ने पूँजीवाद को आर्थिक संगठन की ऐसी प्रणाली बताया है जिसमें मानव निर्मित तथा प्रकृति दत्त पूंजी पर निजी स्वामित्व होता है तथा जिसका निजी लाभ के लिए उपयोग होता है।

एम. गोल्डमेन के अनुसार, “किसी भी समुदाय को पूँजीवादी कहा जा सकता है, यदि वह परम्परागत कृषि, शिकार एवं मछली पालन की अवस्था से ऊपर निकल गया हो तथा उत्पादन वृद्धि के लिए पूँजीगत उपकरणों का प्रयोग कर रहा हो।”

जे. ए. होब्सन ने पूँजीवाद को एक ऐसी अवस्था कहा है, जिसमें नियोजक या नियोजकों को कम्पनी द्वारा बड़े पैमाने व्यवसाय का संगठन किया जाता है और वे अपनी संचित सम्पत्ति का उपयोग लाभ कमाने के उद्देश्य से परिवर्धित परिणाम में उत्पादन करने के लिए कच्चा माल, उपकरण और श्रम खरीदने के लिये करते हैं।

पूँजीवाद की एक परिभाषा यह भी दी जा सकती है कि पूँजीवाद वह व्यवस्था है जिससे बड़े पैमाने पर व्यवसाय का गठन किया जाता है संगठनकर्त्ता एक ही व्यक्ति हो सकता है अथवा एक से अधिक व्यक्तियों का संस्थान शर्त यह है कि संगठनकर्ता के पास अर्जित या संचित धनराशि पर्याप्त होनी चाहिए, जिससे वह कच्चा माल तथा उपकरण की व्यवस्था कर सके एवं मजदूरी भुगतान करके श्रमिक जुटा सके।
ऐसे व्यवसाय का उद्देश्य अन्तर्निहित होगा। सम्पत्ति का परिवर्धित परिमाण में उत्पादन करना, जिसमें उसका मुनाफा अधिकाधिक निजी लाभ पर आधारित इस

पूँजीवादी व्यवस्था की कतिपय विशेषताएं है

  1. पूँजीवादी प्रणाली मुख्यतया एक निजी प्रणाली है, जिसमें पूँजी एवं उत्पादन के उपकरणों पर उद्यमी का स्वामित्व होता है और उपकरणों का उपयोग निजी
    व्यक्तियों द्वारा किया जाता है।
  2. उत्पादन के साधनों पर जिन व्यक्तियों का अधिकार होता है, वे राजकीय नियन्त्रण से मुक्त होते हैं तथा वे बाजार के लिए बिना किसी बाधा के वस्तुओं का उत्पादन कर सकते हैं।

पूंजीवाद के मुख्य लक्षण

  1. निजी सम्पति
  2. उतराधिकार या विरासत
  3. उद्यम की स्वतंत्रता
  4. उत्पादन में निजी लाभ का उद्देश्य
  5. उपभोक्ता की सार्वभौमिकता
  6. प्रतिस्पर्धा

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